‘ज्ञानीपुरुष’ की यह शील संबंधित वाणी अलग-अलग निमिताधीन, अलग-अलग क्षेत्रों में, संयोगाधीन निकली है | उस सारी वाणी को एक साथ संकलित करके यह ‘समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य’ ग्रंथ बना है